Tuesday, January 26, 2010

मेरे मन का पागल पंछी


प्रखर प्रभा और प्रीति की रश्मि

रवि से आलोकित सारा आकाश

अंतर्मन के हर आँगन में

जगमग जगमग प्रेम प्रकाश

मेरे मन का पागल पंछी

क्यूँ उड़ उड़ आये तेरे पास .



ज्ञात है मुझको अपनी सीमा

मन ही मन करता एहसास

भावों के उन्मुक्त गगन में

मधुर मिलन का करता आस

मेरे मन का पागल पंछी

क्यूँ उड़ उड़ आये तेरे पास .



तेरे जल का प्यासा सागर

तरप तरप के देखे राह

तेरी यादों के साये में

भटक भटक के भरते आह

प्रेम गगन में जब उड़ते उड़ते

थक जाये और लग जाये प्यास

मेरे मन का पागल पंछी

क्यूँ उड़ उड़ आये तेरे पास .


BHASKARANAND JHA BHASKAR

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